उज्जैन। ‘जो झुक के तुमसे मिलता होगा/वो कद में तुमसे ऊँचा होगा उक्त पंक्तियों के साथ बैंक यूनियन के वरिष्ठ नेता यू.एस. छाबड़ा ने सरल काव्यांजलि परिवार को अपनी शुभकामनाएँ दीं। संस्था की मासिक गोष्ठी में वे मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। विशेष अतिथि समाज सेवी मम्मु पटेल थे। जानकारी देते हुए संस्था उपाध्यक्ष वी.एस. गेहलोत ‘साकित उज्जैनी ने बताया कि डॉ. रफीक नागौरी के निवास पर आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्ष वरिष्ठ गीतकार डॉ. पुष्पा चौरसिया ने नई पीढ़ी को सिखाते हुए कहा- ‘सुना समझाकर हारी/अब सख्ती करने की बारी (नई पौध) गीत, सन्तोष सुपेकर ने कविता ‘उसी आदमी के पास का वाचन किया और डॉ. पुरुषोत्तम दुबे की सद्य : प्रकाशित कृति ‘लघुकथा : रचना पद्धति और समीक्षा सिद्धांत की समीक्षा करते हुए कहा कि डॉ. दुबे लघुकथा के उन आलोचना शिखरों में से हैं, जिन्होंने संवेदना की व्यक्तिगत स्पेस और उसके जागरूक वैचारिक हस्तक्षेप के मध्य एक सुन्दर संतुलन पेश किया है। चिंतन के अकाल के इस दौर में लघुकथा में यथार्थ को नए ढंग से परिभाषित और संस्थापित करने के लिए डॉ. दुबे बधाई के हकदार हैं।
डॉ. रफीक नागौरी ने ‘हम तो आशिक थे निडर, क्या करते? /दे दिया इश्क में सर क्या करते?, मानसिंह शरद ने हास्य कविता ‘नागपंचमीÓ व दो लघुकथाएँ ‘नागफनीÓ और ‘नया सालÓ प्रस्तुत कीं। दिलीप जैन ने कविता ‘ठोकरÓ, श्रीमती आशागंगा शिरढोणकर ने लघुकथा ‘दो पैसे की हांडीÓ, आशीष श्रीवास्तव ‘अश्कÓ ने ‘जीवन अपने अनुगत होना, अभी सरल कहाँ है?/ सबके मन को जो भा जाए, ऐसी गज़ल कहाँ है?Ó युवा रचनाकार प्रियम जैन ने ‘अब तरफदार नहीं बचा है कोई /जीवन में सार नहीं बचा है कोईÓ सुनाकर समां बांध दिया।
प्रारम्भ में अतिथि स्वागत सचिव दिलीप जैन एवं इंजीनियर अरशान अहमद ने किया।
इस माह के जन्म दिवस वाले सदस्य मानसिंह शरद का भी विशेष स्वागत किया गया। संस्था की परंपरानुसार राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरलजी की कविता- ‘राष्ट्र के श्रृंगार, मेरे देश के साकार सपनों/ देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देनाÓ का वाचन डॉ. रफीक नागौरी ने किया। कार्यक्रम का संचालन मानसिंह शरद ने और अंत में आभार प्रदर्शन सन्तोष सुपेकर ने किया।