उज्जैन। राजाभाऊ महांकाल उज्जैन के युग परुष थे। उन्होंने देश सेवा के लिए जो बलिदान दिया,वह सदियों तक याद रखा जाएगा। अपने लिए तो सभी करते है,देश-समाज का विचार कर परिवार त्यागना और सर्वस्व अर्पित करना,ऐसे उदाहरण कम देखने में आता है। राजाभाऊ ऐसी ही शख्सियत थी।
यह बात प्रदेश की संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर ने कही। आप लोकमान्य टिळक शिक्षा परिसर स्थित राजाभाऊ महांकाल सभागृह में आयोजित राजाभाऊ महांकाल जन्म शताब्दी समारोह समिति द्वारा आयोजित व्यख्यान की अध्यक्षता कर रही थीं।
मुख्य वक्ता म.प्र.साहित्य अकादेमी,भोपाल के निदेशक डॉ. विकास दवे थे। जिन्होंने राजाभाऊ महांकाल के जीवन वृत पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि राजाभाऊ महाकाल मैदान पर फुटबॉल खेलने जाते थे। वहीं पर दिगम्बर राव तिजारे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा लगते थे। तिजारे जी को परमपूज्य डॉ. केशव बलिराम जी हेडगेवार ने संघ शाखा विस्तार के लिए उज्जैन भेज था। उन्होंने राजाभाऊ को भी स्वयंसेवक बनाया। राजाभाऊ के पिता बलवंत और माता अन्नपूर्णा ने उसकी सहमति दी। 1953 में पं.श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर आंदोलन के तहत सत्याग्रह हेतु आव्हान किया। राजाभाऊ ने अपने सत्याग्रही साथियों के साथ उज्जैन से दिल्ली तक कि 600 किमी की यात्रा पूर्ण की।आपको दिल्ली और फ़िरोजपुर की जेल में बन्दी बनाया गया।
आप 1955 मे गोआ विमोचन समिति के आव्हान पर सेकड़ो युवकों के साथ गोआ मुक्ति के लिए घर से निकल गए। गोआ में पुर्तगाली शाशन था। गोआ की सीमा पर सत्याग्रहियों को रोकने के लिए पुर्तगाल सेना गोलियां बरसा रही थी।राजाभाऊ भारत माता की जय के नारे के साथ आगे बढे। उनकी आंख में एक गोली लगी। उन्होंने अपने साथियों को कहा कि कोई बात नहीं और आगे बढ़ने लगे। तभी दूसरी गोले उनके सीने में लगी। इसपर उन्होंने भारत माता जी जय का नारा लगाया और साथी पंजाब के कर्नल सिंह को ध्वज थमा दिया। उनके अमर बलिदान की तारीख थी 15 अगस्त,1955….। उनके पार्थिव शरीर को पुणे ले जाया गया और पंचतत्व में विलीन किया गया।
कार्यक्रम की भूमिका समारोह समिति के अध्यक्ष गिरीश भालेराव ने रखी। आपने समिति द्वारा वर्षभर किए जाने वाले कार्यक्रम की जानकारी दी। इस अवसर पर राजाभाऊ महांकाल के परिजनों का मंच से सम्मान किया गया। संचालन अनिता दीदी ने किया। आभार गौरव बैंडवाल ने माना। इस अवसर पर बड़ी संख्या में स्वयंसेवक,लोकतंत्र सेनानी, बुद्धिजीवी उपस्थित थे।