चीन ने कोरोना के माध्यम से पूरे विश्व को बुरी तरह से हिला दिया। आर्थिक रूप से तोड़ दिया, इसे देखते हुए हमें तो उस देश से नफरत हो जानी थी, पर ऐसा नहीं हुआ। आज भी चीन से कई चीजें आ रही हैं, जो पूरी मानव जाति के लिए घातक है। कोरोना के पहले भारत सरकार ने चीन आने वाले खिलौनों पर आईएसआई मार्का अनिवार्य किया था। पर आज भी खतरनाक रसायन वाले खिलौने चीन से आ रहे हैं और देश के मासूमों से खिलवाड़ कर रहे हैं। दूसरी ओर चीन से एक चीज और आ रही है, जिससे केवल मानवजाति ही नहीं, बल्कि पक्षियों की जान भी खतरे में पड़ गई है। वह चीज है चीनी मांझा।
उत्तरायण की बात आती है, तो गुजरात और राजस्थान का नाम आंखों के सामने तैरने लगता है। उत्तरायण यानी पतंगों का उत्सव। इस दिन पूरा गुजरात घरों की छत पर होता है, जहां परिवार के सभी सदस्य एक साथ पतंग उड़ातें हैं और पारंपारिक व्यंजन ‘उंधियु’ का स्वाद चखते हैं। आज भी गुजरात के कई घरों में कुछ तस्वीरें लगी हैं, जिस पर माला चढ़ी हुई है। ये उन व्यक्तियों की तस्वीरें हैं, जो इन्हीं दिनों चीन से बने धागे से घायल हुए थे, जो बाद में स्मृतियों में खो गए। जी हां, पूरे गुजरात और राजस्थान में इन दिनों पतंग के इस्तेमाल में लाए जा रहे चीन के बने सिंथेटिक मांझे का उपयोग हो रहा है। सरकारी प्रतिबंध के बावजूद केवल मामूली लाभ के कारण देश के व्यापारी चोरी-छिपे चीनी मांझे मंगा रहे हैं और देश के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि ये इन मांझों का इस्तेमाल स्वयं चीन भी नहीं करता, वह केवल निर्यात के लिए ही इस तरह के सिंथेटिक माझे का निर्माण करता है। ये मांझे प्लास्टिक के फाइबर से बने होने के कारण मजबूत होते हैं। यही मजबूती और इसके किफायती होने के कारण लोग इसके पीछे पागल हो जाते हैं। देश प्रेम की भावना को भूलकर लोग इसे खरीद लेते हैं।
इन चीनी मांझों से मनुष्यों के अलावा मूक प्राणी भी अधिक प्रभावित हो रहे हैं। मनुष्य किसी तरह से अपना बचाव कर लेता है, पर मूक पक्षी अपना बचाव नहीं कर पाते। उनके लिए तो उनका आसमां है, पर इंसान ने अब उस पर भी आपना अधिकार कर लिया है। वे अपने आसमान पर भी महफूज नहीं है। उत्तरायण के दौरान कई पक्षी प्रेमी सचेत होकर पतंग की डोरी से घायल होने वाले पक्षियों की तलाश में होते हैं, ताकि उनकी जान बचाई जा सके। इनके प्रयासों से कुछ पक्षियों की जान तो बच जाती है, पर हजारों पक्षी काल-कवलित हो जाते हैं। ये पक्षी मानव से यह भी नहीं पूछ पाते कि आखिर उनका क्या दोष है? वे अपने आकाश पर भी नहीं विचर सकते क्या? शायद इन खामोश परिंदों के सवालों का जवाब इंसान के पास नहीं है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कहा है कि चीनी मांझे इसलिए घातक हैं, क्योंकि वे सिंथेटिक मटेरियल के यार्न से बनते हैं। उस पर कांच की जो कोटिंग की जाती है, उससे मनुष्य की चमड़ी कट जाती है। केंद्र सरकार ने इस पर अभी तक प्रतिबंध नहीं लगाया है। इसलिए पूरे देश में बैखौफ बेचा जा रहा है। इसके आयात पर प्रतिबंध लगे, तो कई गले कटने से बच जाएं। हजारों मूक पक्षियों की जान भी बच सकती है। लोग अपनी छोटी सी खुशी के लिए चीनी मांझों का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि सिंथेटिक होने के कारण ये आसानी से नहीं कटते। दूसरे की पतंगों को काटने में ये धागे माहिर होते हैं। क्षणिक सुख की प्राप्ति के लिए लोग अपनों के जीवन से खेलने लगते हैं।
उत्तरायण एक उत्सव है, इस दिल से मनाया जाना चाहिए। इसमें हिंसा का स्थान नहीं है, पर चीनी धागे का इस्तेमाल हिंसा का एक रूप है। उत्सव में कैसी हिंसा? ये उत्सव तो भाई-चारे का संदेश देने वाला है। जिसमें किसी तरह का दुराव-छिपाव नहीं होता, सभी पूरी मस्ती के साथ इसमें शामिल होते हैं। उत्तरायण वसंत के आगमन का संकेत देता है। वसंत यानी मस्ती का उत्सव। अभी वसंत नहीं आया है, पर चीनी मांझों से घायल होने वाले इंसानों और पक्षियों के जीवन का वसंत तो पूरी तरह से रुठ जाएगा। क्या हम एक छोटा-सा संकल्प नहीं ले सकते कि कुछ भी हो जाए, हम चीनी धागों का इस्तेमाल नहीं करेंगे। यदि कोई करता भी है, तो उसे समझाएंगे। इसके साथ ही चीनी मांझे बेचने वाले व्यापारियों को घायल होते इंसानों और पक्षियों का हवाला देंगे और उनसे अनुरोध करेंगे कि चीनी धागों की बिक्री न कर देश के लोगों की जान बचाने में अपना छोटा-सा सहयोग करे। बस हमारी यही इस सच्ची भावना की खुशबू दूर-दूर तक जाकर आपसी भाई-चारे का संदेश देगी। इस संदेश में छिपी होगी अपनों से अपनापा जोड़ने वाली जीवन की डोर…..