Saturday, April 20, 2024

महाकवि कालिदास को समस्त संस्कृतियों का ज्ञान था, इसलिए वे दीपशिखा कहलाए


उज्जैन अंधकार होता है तो दीपशिखा की आवश्यकता होती है। संस्कृति भिन्न-भिन्न होती है। राजा के सामाजिकता के नेतृत्व की संकल्पना पृथक होती है। महाकवि कालिदास इसीलिए दीपशिखा कहलाए क्योंकि उन्हें समस्त संस्कृतियों का ज्ञान था। जीवन संस्कृति को कालिदास ने अपने काव्य में स्थापित किया है।
​प्रो. विजयकुमार मेनन कुलपति म.पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विवि ने अखिल भारतीय कालिदास समारोह के अन्तर्गत राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम सत्र ‘भारतीय संस्कृति की दीपशिखा कालिदास’ विषय पर अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए ये विचार रखे। सारस्वत अतिथि डॉ. हरिराम रेदास, भोपाल ने अपने शोधपरख उद्बोधन में कहा कि विश्व की सर्वोत्तम उद्दात्तता की परिकल्पना हमारे वेदों में मिलती है, इसीलिए भारतीय संस्कृति महान है। कालिदास ने अपनी उपमाओं के माध्यम से पुरुषार्थ चतुष्टय का प्रतिपादन अपने काव्य में करते हैं।
​विदिशा के डॉ. पुनीत संज्ञा ने महाकवि बाण, माल्लिनाथ और कालिदास के काव्यों का सन्दर्भ लेते हुए काव्य में व्याप्त भारतीय संस्कृति को प्रतिस्थापित किया। रघुवंश में इन्दुमति स्वयंवर के आधार पर दीपशिखा शब्द की अत्यन्त सुन्दर व्याख्या की। सागर विश्वविद्यालय के डॉ. नौनिहाल गौतम ने बड़ी ही सरलता से जन्म जन्मांतर का साथ भारतीय संस्कृति में स्थापित है, यह व्याख्यायित किया। आपने बताया कि ऋषियों के आश्रम जिन्हें हम तपोवन कहते हैं वे भारतीय जनमानस के विश्वास के केन्द्र हैं। सागर विश्वविद्यालय के डॉ. संजय कुमार ने भारतीय संस्कृति में रामधारीसिंह दिनकर के उद्गार को प्रकट करते हुए बताया कि भारतीय संस्कृति सामाजिक संस्कृति है, जिसका कारण यह है कि इसने आने वाली समस्त संस्कृतियों को आत्मसात किया है। आपने महाकवि कालिदास को उद्धृत करते हुए बताया कि त्यागपूर्वक भोग की कामना हमारी भारतीय संस्कृति का मानदण्ड है, जिसे रघुवंश में राजा दिलीप की गौसेवा से देखा जा सकता है। इस तरह महाकवि ने त्याग, यश, सत्य और आश्रम व्यवस्था को अपने काव्य में रेखांकित किया है। इसलिए कालिदास भारतीय संस्कृति की दीपशिखा कहलाए।
​शोध संगोष्ठी में अतिथियों का स्वागत एवं आभार कालिदास अकादमी के प्रभारी निदेशक डॉ. सन्तोष पण्ड्या ने किया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. सदानन्द त्रिपाठी, उज्जैन ने किया। इस अवसर पर पद्मश्री श्री अभिराज राजेन्द्र मिश्र, शिमला, प्रो. रहसबिहारी द्विवेदी, डॉ. तुलसीदास परौहा, प्रो. बालकृष्ण शर्मा, प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, प्रो. अरुण वर्मा, प्रो. वंदना त्रिपाठी, उज्जैन उपस्थित थे।
राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का सत्र सम्पन्न
​कालिदास समिति विक्रम विश्वविद्यालय के तत्त्वावधान में राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के प्रथम सत्र का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता डॉ. ताराशंकर शर्मा पाण्डेय, कुलपति, श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय, निम्बाहेडा द्वारा की गई। कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि प्रो. मुरलीमनोहर पाठक, कुलपति, श्री लालबहादुर शास्त्री, संस्कृत वि.वि., नईदिल्ली एवं विशिष्ट अतिथि प्रो. अखिलेशकुमार पाण्डेय, कुलपति, विक्रम विश्वविद्यालय एवं प्रो. सी.जी.विजयकुमार मेनन, कुलपति, महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन थे। कालिदास समिति के सचिव प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने विषय प्रवर्तन करते हुए बताया कि आज की यह संगोष्ठी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमेें देश के चार विश्वविद्यालयों के कुलपति अतिथि के रूप में मंचासीन है। इस संगोष्ठी में कालिदास साहित्य के विविध पक्षों का स्वतंत्र एवं अंतरानुशासनिक अनुशीलन किया जा रहा है। महाकवि कालिदास जीवन की सम्पूर्णता के कवि हैं।
​कुलपति, प्रो. सी.जी.विजयकुमार मेनन द्वारा अपने उद्बोधन में कहा गया कि इस अखिल भारतीय आयोजन के कारण उज्जैन का सम्पूर्ण वातावरण भी कालिदासमय हो गया है। इसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों से विद्वान् आए हैं। वर्तमान में ज्ञान-विज्ञान का संचारक्रांति के माध्यम से विस्फोट हो रहा है। इससे नवीन ज्ञान के साथ ही प्राचीन ज्ञान-विज्ञान का अद्भुत समन्वय हो रहा है। उन्होंने आह्वान किया कि जब भी कोई नवीन शोध कार्य किया जाता है तो वह नवीन शोध कार्य मूल गं्रन्थों के आधार पर नवीन दृष्टिकोण से होना चाहिए।
​कुलपति, प्रो. मुरलीमनोहर पाठक ने अपने उद्बोधन में कहा कि महाकवि कालिदास अनुपम है। उनकी तुलना किसी अन्य से नहीं की जा सकती। कालिदास के काव्य में भाव, भाषा और अभिव्यक्ति का अतुलनीय समन्वय हुआ है इसलिए कालिदास कविकुलशिरोमणि हैं। कालिदास का साहित्य हमें अभिमान का त्याग करने की शिक्षा देता है।
​कुलपति, प्रो. अखिलेशकुमार पाण्डेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारा जो भी ज्ञान-विज्ञान संस्कृत भाषा में उपलब्ध है इसे हमें आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से जोड़ना होगा। संस्कृत और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान को जोड़ने के लिए संस्कृत के विद्वानों एवं वैज्ञानिकों को साथ मिलकर एक समग्र अभियान चलाना होगा। कालिदास का काव्य एवं इसमें वर्णित विभिन्न विषयों पर्यावरण, समाज प्रबंधन, सैन्य विज्ञान, आयुर्वेद आदि का समन्वय आधुनिक विज्ञान के साथ आवश्यक है।
​भुवनेश्वर से पधारे श्री सुरेश्वर मेहर तथा डॉ. सस्मिता बन्दरनायक ने महाकवि कालिदास दृष्ट्या परमतत्त्व स्वरूप विमर्श विषय पर अपना शोधपत्र प्रस्तुत करते हुए बताया कि साहित्य एवं दर्शन में परस्पर गहरा संबंध है। कालिदास ने वैदिक संदर्भ को एवं अवधारणाओं को अपने काव्य में प्रस्तुत किया है। डॉ. चिन्तामणि राठौर ने महाकवि कालिदास के काव्य में मानवीय मूल्यों की सर्जना विषय पर शोधपत्र प्रस्तुत करते हुए बताया कि महाकवि कालिदास के काव्य में नैतिकता, धर्म, दर्शन, मानवीय मूल्यों एवं सांस्कृतिक चेतना का अद्भुत समन्वय मिलता है। जावरा के श्री कारुलाल जमड़ा ने कहा कि कालिदास के रघुवंश एवं मेघदूत आदि ग्रंथों में भारत के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों, नदी पर्वतों एवं नगरों के जो नाम मिलते हैं उनके आधार पर कालिदास काव्य गमन पथ पर का निर्माण किया जाना चाहिए।
​डॉ. स्मिता भवालकर ने महाकवि कालिदास के साहित्य में प्रतिबिम्बित तत्कालीन भारतीय जीवन, भारतीय संस्कृति एवं सर्वजनसुखाय की भावना को उनके काव्य का मूल आधार बताते हुए कहा कि रघुवंश में एक जनहितकारी आदर्श राज्य की परिकल्पना मिलती है।
​डॉ. आर.सी.ठाकुर ने कालिदास साहित्य एवं प्राचीन मुद्रा शास्त्र विषय पर अपना शोधपत्र प्रस्तुत करते हुए कालिदास साहित्य में वर्णित विषयों का साक्ष्य प्राचीन मुद्राओं में मिलता है।
​कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति, डॉ. ताराशंकर शर्मा ‘पाण्डेय’ ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि कालिदास काव्य की आत्मा है। मोक्षदायिनी नगरियों की सूची में उज्जयिनी का नाम छठे स्थान पर आता है षष्ट्म स्थान देवी कात्यायिनी के मंगल स्वरूप का है। यह शिव की नगरी है एवं महाकवि कालिदास कवि शिरोमणि है। उनका साहित्य आज भी प्रासंगिक है।
​आभार प्रदर्शन कालिदास संस्कृत अकादमी की उपनिदेशक डॉ. योगेश्वरी फिरोजिया द्वारा किया गया। कार्यक्रम एवं संगोष्ठी का संचालन डॉ. जगदीशचन्द्र शर्मा द्वारा किया गया।
समारोह में आज
​समारोह के अन्तर्गत भारतीय संस्कृति की दीपशीखा कालिदास शीर्षक पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का द्वितीय सत्र आयोजित होगा, जिसकी अध्यक्षता प्रो. केदारनारायण जोशी, उज्जैन करेंगे। राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का द्वितीय सत्र दोपहर 2.30 बजे से आयोजित होगा। इसी संध्या पं. सूर्यनारायण व्यास व्याख्यानमाला के द्वितीय सत्र में रघुवंश की पाठालोचना विषय पर व्याख्यान होगा, जिसके वक्ता प्रो. बसंतकुमार भट्ट, अहमदाबाद होंगे तथा अध्यक्षता प्रो. बालकृष्ण शर्मा, उज्जैन करेंगे।
​सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्तर्गत श्री गजेन्द्र पण्डा, भुवनेश्वर के निर्देशन में शास्त्रीय नृत्य ओडिसी एवं श्री पियाल भट्टाचार्य, कोलकाता के निर्देशन में हिन्दी नाटक विक्रमसंवत्सर की प्रस्तुति दी जाएगी।

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